शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

जाल का पेड़ {Jal tree}

 परिचय :- जाल  शुष्क  जलवायु में विलुप्त के कगार पर खड़ा एक महत्वपूर्ण पेड़ है यह पेड़ अपने आप में एक जाना माना पेड़ है इसकी खासियत का एक प्रसिद्ध कारण है इस पेड़ का उल्लेख महाभारत के करणपर्व  के अध्याय 30 में श्लोक 24 में किया गया है गुरु नानक भी इस पेड़ को धूप से बचने के लिए उपयोग में लिया करते थे ऐसा गुरु नानक जन्म तिथि में वर्णन है इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम साल्वाडोरा ओलियोडेस है इस पेड़ की लंबाई 20 से 40 फीट तक होती है तथा चौड़ाई 10 से 12 फीट की होती है इस पेड़ का तना गर्मियों में ज्यादा खुरदरा और शुष्क हो जाता है जिससे उत्सर्जन कम होता है यह पेड़ ज्यादातर शुष्क जलवायु लवणीय भूमि और बंजर भूमि पर पाया जाता है |  

जाल के पेड़ 
                                                                                                                                                                    

पत्तियां का उपयोग :- इस पेड़ की पत्तियां  का हरे और सूखे दोनों रूपों में उपयोग में लिया जाता है हरी पत्तियां मवेशियों के लिए हरे चारे के रूप में तथा सूखी पत्तियां भविष्य में चारे के लिए भंडारण के रूप में एकत्रित की जाती है इस पेड़ की घनी पत्तियां और तने के बने कोटर बहुत सारे स्थानीय पक्षियों के लिए निवास स्थान प्रदान करते हैं

जाल के पेड़ की पत्तियां 
  

फल व बीज :- जाल के पेड़ पर फरवरी से 15 मार्च के बीच छोटे-छोटे सफेद कठोर फूल लगते हैं जिनको मींझर कहते हैं यह मींझर मार्च की समाप्ति से अप्रैल माह के पहले सप्ताह तक हरे रंग में बदलकर रसदार पानी से भरकर सोयाबीन के आकार की हो जाती है अप्रैल मध्य से यह पकनी शुरू हो जाती है और चने के आकार में लाल ,पीली और बैगनी रंग में हो जाती है जिनको पीलू कहा जाता है इन दिनों मारवाड़ क्षेत्र में पीलू की बहार आई हुई होती है इन पीलू को तोड़ने के लिए महिलाएं और बच्चे डोरी से लौटा बांध कर कमर या गले में लटका कर जाल के पेड़ पर चढ़ जाते हैं इस पीलू को खाने में स्थानीय लोग जानकार होते हैं क्योंकि अनजान लोग इस फल को खाने में गलती कर बैठते हैं इस फल को खाते समय बीज को थूकना पड़ता है क्योंकि जाल का बीज मुँह में टूट जाने पर खारापन आ जाता है और एक अन्य विशेषता इस पेड़ के फल को एक-एक करके खाने से जीभ छील जाती है और मुंह में छाले बन जाते हैं इसलिए 8 से 10 दाने एक साथ खाए जाते हैं मारवाड़ के जाल के फल को देशी अंगूर कहा जाता है इसलिए यहां के स्थानीय लोग बड़े चाव से खाते हैं पके हुए फल को हल्का सुखाया जाता है और खाया जाता है जिनको कोकड़ कहा जाता है कोकड में बीज को इकट्ठा किया जाता है यह कोकड़ देशी किशमिश के रूप में खाई जाती है | 


फल (पीलू)


जाल के पेड़ का लाभ :- जाल के पेड़ की लकड़ी फर्नीचर बनाने तथा जलाने में उपयोग ली जाती है इस पेड़ की हरी टहनी को ग्रामीण क्षेत्रों में टूथब्रश के रूप में उपयोग किया जाता है इस पेड़ की पत्तियां का उपयोग मवेशियों के चारे के रूप में भी किया जाता है इस पेड़ का फल (पीलू) जिसमें विटामिन सी और कार्बोहाइड्रेड की मात्रा पाई जाती है जो शरीर के लिए लाभदायक होती है | पीलू खाने से शरीर में पानी की कमी की पूर्ति होती है और लू भी नहीं लगती है इस पेड़ के फल (पीलू) अत्यधिक मीठे और स्वादिष्ट होते हैं इस पेड़ के तने में बने कोटर में स्थानीय पक्षी मोर, तोते, चिड़िया, जंगली बिल्ली, कोयल आदि के निवास स्थान होते हैं इसके अलावा जाल के पेड़ का उपयोग कई रोगों में औषिधीय के रूप में किया जाता है 

पेड़ 


English translate
 :- Introduction: - The jal is an important tree standing on the verge of extinction in teaching climate. This tree is a well-known tree in itself. It is a famous reason for its specialty. This tree is mentioned in verse 24 in chapter 30 of Karanaparva of Mahabharata. Guru Nanak also used this tree to avoid sunlight. It is described in Guru Nanak's date of birth that the scientific name of this tree is Salvadora oliodes. The length of this tree is 20 to 40 feet and width is 10 to 12 feet. The stem of this tree is more rough and dry in summer due to which the emission is less. This tree is found mostly on dry climate saline land and wastelands. 

Jal tree

Use of husbands: - The leaves of this tree are used in both green and dry forms. Green leaves are collected as green fodder for cattle and dry leaves are collected as storage for fodder in future. Cottages made of thick leaves and stem provide habitat for many local birds. 

Fruits and seeds: - Small white hard flowers are planted on the trap tree between February to March 15, which is called Meinjhar. This Meenjhar is changed from green to juicy from the end of March to the first week of April, filled with juicy water, the size of soybean. It starts to ripen from mid-April and becomes red yellow and purple in the shape of gram which is called yellow. These days, there is a spurt of peel in Marwar region to break these peelu. Women and children return from the rope and hang on the waist or neck and climb on the trap tree, the locals are knowledgeable in eating this peelu because unknown people make mistake in eating this fruit while eating this fruit in the middle. Spitting occurs because salinity breaks when the seed of the trap breaks in the mouth and another feature is that eating the fruit of this tree one by one peels the tongue and causes blisters in the mouth, so eat 8 to 10 grains at once. The fruit of Marwar's net is called native grapes, so the locals here eat with great fervor, the ripe fruit is lightly dried and eaten. Those are called kokad, the seeds are collected in kokkad, this kokad is eaten as native cultivar.

Fruits

Benefits of Jal tree: - The wood of jal  tree is used for making furniture and burning green branch of this tree is used as a toothbrush in rural areas. The leaves of this tree are used as fodder for cattle. Also, fruit of this tree is peelu, which contains vitamin C and carbohydrate, which helps to meet the lack of water in the body. Eating peelu does not cause sunstroke. From the trunk of this tree, the Kotar is the habitat of the local bird peacock, parrot, bird, wild cat, cuckoo etc. Apart from this the trap tree is used as a medicinal in many diseases.      

                                                                                                       Thank you......  

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