शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

रोहिड़ा का पेड़ [Rohida tree]

 परिचय :- रोहिड़ा रेगिस्तान के क्षेत्र में पाया जाने वाला यह बहुमूल्य वृक्ष है रोहिडा राजस्थान का राज्य पुष्प है जो 31अक्टूबर 1983 को घोषित हुआ रोहिड़ा का वैज्ञानिक नाम टेकोमेला अंडू लेटा है यह पेड़ थार रेगिस्तान के अलावा शुष्क जलवायु वाले मैदानी और पहाड़ी जगह पर भी काफी संख्या में पाए जाते हैं इस पेड़ की पर्यावरण संतुलन और जैव विविधता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है इस पेड़ को मारवाड़ का सागवान कहते हैं यह पेड़ विपरीत परिस्थितियों जैसे बहुत कम वर्षा ,रेगिस्तान की भीषण गर्मी ,अधिक तापमान ,और न्यूनतम तापमान जैसी परिस्थिति को सहन करके भी जीवित रहने की शक्ति रखता है यह पेड़ औसतन 10 से 15 मीटर लंबाई में होता है इस पेड़ पर कैर की तरह साल में दो बार फूल आते हैं जो पीले, लाल और नारंगी रंग में होते हैं यह पेड़ मरूभूमि प्रसार को रोकने में कारगर सिद्ध हुआ है क्योंकि यह पेड़ विकट परिस्थितियों में भी जीवित रहने की क्षमता रखता है | 

रोहिड़े का पेड़ 

लकड़ी :- इस पेड़ की लकड़ी कठोर और मजबूत होती है| रोहिड़े के पेड़ की लकड़ी का उपयोग दरवाजो, खिड़कियों, चारपाई, फर्नीचर और कृषि यंत्रों को बनाने में किया जाता है इस पेड़ की लकड़ी मजबूती के साथ साथ टिकाऊ की होती है हालांकि इसकी लकड़ी महंगी होती है इसी तरह टिकाऊ और महंगी शीशम की लकड़ी होती है इस कारण इसको आम बोल-चाल में रेगिस्तान का शीशम भी कहते हैं

रोहिड़े की लकड़ी 

लकड़ी 

फूल :- रोहिडा पेड़ की पहचान लकड़ी के साथ-साथ इस पेड़ के आकर्षक फूलों से भी है इस पेड़ के सर्दी के मौसम में फूलों की बहार आई हुई होती है | इनके फूल मुख्य रूप से तीन रंगों में होते हैं लाल नारंगी और पीले इस पेड़ के फूल गंधहीन होते हैं और आकर्षक होते हैं इन फूलों को धार्मिक स्थलों, पर्वो, पूजा-पाठ आदि में उपयोग लिया जाता है जब इस पेड़ पर फूलों की बहार आती है तब अन्य जीव-जंतुओं का पोषण भी होता है मुख्य रूप से फूलों के रस को मधुमक्खियों, पक्षियों, कीट पतंगों, रस भक्षी जीवो द्वारा चूसा जाता है | पालतू पशुओं जैसे गाय -भैंस ,भेड़ , बकरियां ,ऊंट  आदि इस पेड़ के फूलों को बड़े चाव से खाते हैं | 

रोहिड़े के फूल 

पत्तियां :- रोहिड़े के पेड़ की पत्तियां इसकी झुकी हुई शाखाओं पर छोटी-छोटी होती हैं पत्तियां लंबी और आगे के भाग पर नुकिली होती है इस पेड़ की पत्तियां ऊपर से हरे रंग में तथा नीचे से हल्के हरे रंग में होती है इन पत्तियों को पालतू पशुओं द्वारा चारे के रूप में बड़े चाव से खाया जाता है

बीज :- इस पेड़ के जब फल लगते हैं तब उनका आकार चंद्राकार होता है इस फल के अंदर बीज बालदार होते हैं यह बीच इन बालों की वजह से रेगिस्तान में कोसों दूर हवा में उड़ कर चले जाते हैं


लाभ :- जैसा कि आपको लकड़ी और फूलों में बताया गया है की इसकी लकड़ी का मानव जीवन में आर्थिक लाभ लिया जाता है और फूलों को पालतू पशुओं के चारे के रूप में उपयोग लेते हैं रोहिड़े का पेड़ औषधि रूपों में भी लाभ देता है जैसा कि फोड़े फुंसियों में और मूत्र संबंधित रोगों में होता है| लीवर संबंधित बीमारी में रोहिड़े के पेड़ को रामबाण माना गया है रोहिड़े के पेड़ की छाल का उपयोग भी औषधियों रूपों में होता है इस पेड़ का एक महत्वपूर्ण लाभ रेगिस्तान में मिट्टी के प्रसार को रोकने में किया जाता है सरकार और वन विभाग द्वारा विभिन्न योजनाओं में इस पेड़ को ज्यादातर पनपाया जाता है

आमजन से खतरा :- रेगिस्तान के सुशोभित इस आकर्षक पेड़ का आमजन दुश्मन बना हुआ है मानव द्वारा अपने लाभ के लिए इस पेड़ की अंधाधुंध कटाई की जा रही है क्योंकि इस पेड़ की लकड़ी काफी महंगी और टिकाऊ होती हैं लेकिन लोगों द्वारा यह बात भी भूलनी नहीं चाहिए कि इस कीमती पेड़ को बचाने के लिए सरकार द्वारा कड़े नियम लागू किए हुए हैं राजस्थान वन अधिनियम 1953 में इस पेड़ को काटने, नुकसान पहुंचाने या परिवहन करने पर सजा और जुर्माने का प्रावधान है इसलिए इस पेड़ को अगर किसी मजबूरी में काटना पड़े तो सरकार से अनुमति लेकर ही काटे| 

                                                            

           दोस्तों आप द्वारा इस पेड़ के बारे में पढ़ी गई जानकारी कैसी लगी कमेंट जरूर करें इसके अलावा इस पेड़ को लेकर आपका कोई सुझाव हो तो आप कमेंट बॉक्स के माध्यम से भी कह सकते हैं तथा अपने दोस्तों को भी इस पेड़ की अहमियत बताने के लिए इस पोस्ट को शेयर जरूर करें | 

                                                   धन्यवाद एक फोरेस्टर की कलम से 

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बुधवार, 13 जनवरी 2021

सांडा {स्पाईनी टैलेड लिजार्ड} SANDA [ Spiny-tailed lizard]

  परिचय :- सांडा पश्चिमी राजस्थान के गर्म इलाकों की रेत में रेंगता यह मासूम सा जीव सांडा कहलाता है जिसका मरुस्थलीय खाद्य श्रंखला में एक महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन इस मासूम जीव को लोगों द्वारा यौनशक्ति वर्धक एवं शारीरिक दर्द के उपचार की झूठी कहानी फैलाकर शाम की संध्या में अवैध शिकार किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप इस जीव की संख्या लगातार कम होती जा रही है सांडा छिपकली वर्ग का एक सदस्य है| इसका अंग्रेजी नाम  Spiny-tailed lizard  है जो इसके पूंछ पर पाए जाने वाले कांटेदार शल्क के अनेक छलो की श्रंखला के कारण मिला है इसका वैज्ञानिक नाम सारा हार्डविकी हैं सांडा  में नर 40 से 45 सेंटीमीटर आकार में तथा मादा 35 से 40 सेंटीमीटर आकार में होती है नर की पूंछ उसके शरीर की लंबाई के बराबर या अधिक तथा अंतिम छोर पर नुकीली होती हैं जबकि मादा की पूंछ शरीर की लंबाई से छोटी तथा अंतिम छोर पर मोटी होती है भारत में पश्चिम क्षेत्र में पाए जाने वाली इस छिपकली (राजस्थान के रेगिस्तान और कच्छ के रण) दोनों में एक भिन्नता पाई जाती है रेगिस्तान के क्षेत्रों में पाए जाने वाले सांडा के पिछले पैरों की जांघों के दोनों तरफ हल्का चमकीला नीला रंग देखने को मिलता है जबकि कच्छ के रण के सांडा  में ऐसा नहीं हैं 

सांडा का फोटो 

आवास :- रेगिस्तान  की भीषण गर्मी से बचने के लिए यह जीव भी अन्य मरुस्थलीय जीवो की तरह भूमिगत मांद में रहते हैं सांडा का आवास धरती के अंदर टेडा मेढा, सर्पिलाकार 3 से 4 सेंटीमीटर तक गहरा होता है मांद के अंदर का तापमान बाहर की तुलना में काफी कम होता है| रेगिस्तान की कठोर जलवायु में जीवित रहने के लिए मांद बनाना यह एक आवश्यक कौशल है पैदा होने के कुछ ही समय बाद सांडा के शिशु मादा के साथ भोजन की तलाश के साथ-साथ मांद की खुदाई सीखना भी शुरू कर देते हैं

सांडा के आवास में रेंड सेंड बौआ का प्रवेश 


भोजन :- सांडा का आहार मुख्यतः वनस्पति, घास एवं पत्तियां तक सीमित रहता है लेकिन शिशु सांडा वनस्पति के साथ-साथ कीटों, चींटी ,दिमक एवं टिड्डों को अपना आहर बनाते हैं

                  विशेषता => वनस्पति व घास को फूंक मारकर साफ करके खाता हैं | 

प्रजनन :- सांडा का प्रजनन काल फरवरी से शुरू होता है और इनके छोटे शिशुओं को बरसात के मौसम आने {जून जुलाई } तक घास के इलाकों में उछल-कूद करते देखा जा सकता है

परभक्षी जीवों से सुरक्षा :- जैसा कि आपको शुरू से ही बताया गया है कि सांडा मरुस्थलीय खाद्य श्रंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है इसके शरीर में वसा की अधिक मात्रा के कारण रेगिस्तान में कई परभक्षी जीवों का प्रमुख भोजन है सांडा को भूमि तथा हवा दोनों तरफ से परभक्षी जीवो से खतरा रहता है मरुस्थल क्षेत्र में विषहीन रेड सैंड बोआ सांप अपने शरीर की जकड़न में दबोचकर सांडा का शिकार करता है सांडा अपने बचाव में पंजों को जमीन पर मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश करता है मरू लोमड़ी को भी सांडा की मांद को खोदकर शिकार करते पाया गया है हवा से भी कुछ परभक्षी जीवो द्वारा सांडे का शिकार किया जाता है इन परभक्षी जीवों से बचने के लिए सांडा ने भी अपनी सुरक्षा के लिए कई तरीके विकसित किए हैं हालांकि इसके पास कोई आक्रामक सुरक्षा प्रणाली तो नहीं है परन्तु इसका छलावरण ,फुर्ती एवं सतर्कता इसके प्रमुख सुरक्षा उपाय हैं इसकी त्वचा का रंग रेत एवं सुखी घास के समान होने के कारण यह अपने आसपास के परिवेश में अच्छी तरह  घुल- मिल जाता है | इसके अलावा सांडा शिकारियों से बचने के लिए अपनी तेज गति पर निर्भर रहता है यह भोजन की तलाश में अपने मांद  से ज्यादा दूर नहीं जाते हैं और अपने आगे के पैरों के बल सिर को  ऊपर उठाकर पूंछ को धनुषाकार करके रहता हैं और मामूली सी हलचल से खतरा भांप कर तेजी से अपने मांद में चला जाता हैं 

सांडा का शिकार रेंड सेंड बौआ साँप द्वारा 

खतरे को भांपता हुआ सांडा 

सांडा से जुड़ी भ्रांति  :- इस जीव से जुड़ी एक भ्रांति है बस यही भ्रांति सांडा की घटती आबादी का मुख्य कारण है लोगों का मानना है कि सांडा का तेल यौनशक्ति वर्धक एवं शारीरिक दर्द निवारक के रूप में होता है और सांडा को खाने से शरीर में ताकत आती है जो कि बिल्कुल निराधार है अर्थात यह महज एक लोगों द्वारा फैलाई गई भ्रांति है हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं है इस तेल का बताया गया लक्षण एक अंधविश्वास है इस तेल के रासायनिक गुण किसी भी अन्य जीव की चर्बी के तेल के समान ही है इस अंधविश्वास के कारण इस मासूम जीव का अत्यधिक शिकार किया जाता है

सरकार के सुरक्षा कवच :- सांडा के अवैध शिकार को रोकने तथा इस प्रजाति को बचाने के लिए इस जीव को भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 2 के भाग 2 में रखा गया है जिसमें दोषी को कठोरतम सजा का प्रावधान है


[दोस्तों मेरे इस आर्टिकल का मुख्य उद्देश्य लोगों में फैली इस गलत धारणा को दूर करने का है आपको सांडा के बारे में मिली जानकारी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं और इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें ताकि इस मासूम जीव को बचाया जा सके]

                                                                                  धन्यवाद 

                                                                                                                                                        


English translate =

                                 introduction :- Saanda crawling in the sands of the hot areas of western Rajasthan. This innocent little creature is called Sanda, which has an important role in the desert food chain, but this innocent creature is poached in the evening of the evening by spreading false story of sexual enhancement and physical pain treatment As a result of which the number of this organism is continuously decreasing, Saanda is a member of the lizard class. Its English name is Spiny-tailed lizard, which is derived from the series of many rings of prickly shells found on its tail. Its scientific name is Sara Hardwiki. The male in the bull is 40 to 45 cm in size and the female is 35 to 40 cm in size. The tail of the male is equal to or more than the length of its body and is pointed at the end while the tail of the female is shorter than the length of the body and thick at the end, this lizard found in the western region of India (desert of Rajasthan and A variation of both is found in the Rann of Kutch) Light bright blue color is seen on either side of the thighs of the hind legs of the sands found in the areas of the desert, whereas in the sand of the Rann of Kutch, it is not so.

Photo of saanda

Accommodation :-  To survive the scorching heat of the desert, these creatures also live in underground dens like other desert creatures. The habitat of sand is teda ram inside the earth, the spiral is 3 to 4 cm deep. The temperature inside the den is much lower than outside. It happens. It is an essential skill to make a den to survive in the harsh desert climate. Shortly after being born, the bulls of the bull start learning to hunt food with the female as well as learn to dig the den.              

food :-  The diet of the bull is mainly limited to the vegetation, grasses and leaves, but the baby sanda vegetation as well as insects, ants, dimples and grasshoppers make it their own.                

Specialty => Clean the vegetation and grass and eat it.

Reproduction :- The breeding period of bulls starts from February and their young babies can be seen jumping in the grasslands till the rainy season {June-July}. 


Protection from predators :- As you have been told from the beginning that Sanda is an important part of the desert food chain, due to its high amount of body fat, the desert is the staple food of many predators in the desert. The bull is threatened by predators from both land and air. In the desert's area, the venomous red sand boa snake snaps into the tightness of its body and hunts the bulls. Sanda tries to hold the claws to the ground in his defense. The maru fox has also been found hunting by digging the sand's den. Sanday is also hunted by some predatory creatures to avoid these predatory organisms. Sande has also developed several methods for its protection, although it does not have an aggressive security system but its camouflage, agility and vigilance are its main There are safety measures, due to its skin color like sand and dry grass, it mixes well in its surroundings. Apart from this, Sanda relies on his speed to avoid predators.He does not go far from his lair in search of food and keeps his front legs up by raising the head and arching the tail and with slight movement. Sensing the danger, he quickly goes into his den. 

Saanda hunted by Rand Senda boaa Snake

The misconception related to the bull :- There is a misconception associated with this organism, this misconception is the main reason for the decreasing population of the bulls. People believe that the oil of sand is as a sexual enhancer and physical pain reliever and eating the Sunday gives strength in the body which is absolutely It is baseless, that is, it is just a misconception spread by one people. In reality, there is nothing like this. Innocent creatures are heavily hunted. 


Government Security Guard :- To prevent poaching and save this species, this animal has been kept in Part 2 of Schedule 2 of the Indian Wildlife Protection Act 1972, which provides the harshest punishment to the guilty. 


     [Friends, the main purpose of this article of mine is to dispel this misconception spread among people by commenting on how you got information about the bull, and share this article with your friends also so that this innocent creature can be saved. Could]

                                                              

                                                                Thank you


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शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

जाल का पेड़ {Jal tree}

 परिचय :- जाल  शुष्क  जलवायु में विलुप्त के कगार पर खड़ा एक महत्वपूर्ण पेड़ है यह पेड़ अपने आप में एक जाना माना पेड़ है इसकी खासियत का एक प्रसिद्ध कारण है इस पेड़ का उल्लेख महाभारत के करणपर्व  के अध्याय 30 में श्लोक 24 में किया गया है गुरु नानक भी इस पेड़ को धूप से बचने के लिए उपयोग में लिया करते थे ऐसा गुरु नानक जन्म तिथि में वर्णन है इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम साल्वाडोरा ओलियोडेस है इस पेड़ की लंबाई 20 से 40 फीट तक होती है तथा चौड़ाई 10 से 12 फीट की होती है इस पेड़ का तना गर्मियों में ज्यादा खुरदरा और शुष्क हो जाता है जिससे उत्सर्जन कम होता है यह पेड़ ज्यादातर शुष्क जलवायु लवणीय भूमि और बंजर भूमि पर पाया जाता है |  

जाल के पेड़ 
                                                                                                                                                                    

पत्तियां का उपयोग :- इस पेड़ की पत्तियां  का हरे और सूखे दोनों रूपों में उपयोग में लिया जाता है हरी पत्तियां मवेशियों के लिए हरे चारे के रूप में तथा सूखी पत्तियां भविष्य में चारे के लिए भंडारण के रूप में एकत्रित की जाती है इस पेड़ की घनी पत्तियां और तने के बने कोटर बहुत सारे स्थानीय पक्षियों के लिए निवास स्थान प्रदान करते हैं

जाल के पेड़ की पत्तियां 
  

फल व बीज :- जाल के पेड़ पर फरवरी से 15 मार्च के बीच छोटे-छोटे सफेद कठोर फूल लगते हैं जिनको मींझर कहते हैं यह मींझर मार्च की समाप्ति से अप्रैल माह के पहले सप्ताह तक हरे रंग में बदलकर रसदार पानी से भरकर सोयाबीन के आकार की हो जाती है अप्रैल मध्य से यह पकनी शुरू हो जाती है और चने के आकार में लाल ,पीली और बैगनी रंग में हो जाती है जिनको पीलू कहा जाता है इन दिनों मारवाड़ क्षेत्र में पीलू की बहार आई हुई होती है इन पीलू को तोड़ने के लिए महिलाएं और बच्चे डोरी से लौटा बांध कर कमर या गले में लटका कर जाल के पेड़ पर चढ़ जाते हैं इस पीलू को खाने में स्थानीय लोग जानकार होते हैं क्योंकि अनजान लोग इस फल को खाने में गलती कर बैठते हैं इस फल को खाते समय बीज को थूकना पड़ता है क्योंकि जाल का बीज मुँह में टूट जाने पर खारापन आ जाता है और एक अन्य विशेषता इस पेड़ के फल को एक-एक करके खाने से जीभ छील जाती है और मुंह में छाले बन जाते हैं इसलिए 8 से 10 दाने एक साथ खाए जाते हैं मारवाड़ के जाल के फल को देशी अंगूर कहा जाता है इसलिए यहां के स्थानीय लोग बड़े चाव से खाते हैं पके हुए फल को हल्का सुखाया जाता है और खाया जाता है जिनको कोकड़ कहा जाता है कोकड में बीज को इकट्ठा किया जाता है यह कोकड़ देशी किशमिश के रूप में खाई जाती है | 


फल (पीलू)


जाल के पेड़ का लाभ :- जाल के पेड़ की लकड़ी फर्नीचर बनाने तथा जलाने में उपयोग ली जाती है इस पेड़ की हरी टहनी को ग्रामीण क्षेत्रों में टूथब्रश के रूप में उपयोग किया जाता है इस पेड़ की पत्तियां का उपयोग मवेशियों के चारे के रूप में भी किया जाता है इस पेड़ का फल (पीलू) जिसमें विटामिन सी और कार्बोहाइड्रेड की मात्रा पाई जाती है जो शरीर के लिए लाभदायक होती है | पीलू खाने से शरीर में पानी की कमी की पूर्ति होती है और लू भी नहीं लगती है इस पेड़ के फल (पीलू) अत्यधिक मीठे और स्वादिष्ट होते हैं इस पेड़ के तने में बने कोटर में स्थानीय पक्षी मोर, तोते, चिड़िया, जंगली बिल्ली, कोयल आदि के निवास स्थान होते हैं इसके अलावा जाल के पेड़ का उपयोग कई रोगों में औषिधीय के रूप में किया जाता है 

पेड़ 


English translate
 :- Introduction: - The jal is an important tree standing on the verge of extinction in teaching climate. This tree is a well-known tree in itself. It is a famous reason for its specialty. This tree is mentioned in verse 24 in chapter 30 of Karanaparva of Mahabharata. Guru Nanak also used this tree to avoid sunlight. It is described in Guru Nanak's date of birth that the scientific name of this tree is Salvadora oliodes. The length of this tree is 20 to 40 feet and width is 10 to 12 feet. The stem of this tree is more rough and dry in summer due to which the emission is less. This tree is found mostly on dry climate saline land and wastelands. 

Jal tree

Use of husbands: - The leaves of this tree are used in both green and dry forms. Green leaves are collected as green fodder for cattle and dry leaves are collected as storage for fodder in future. Cottages made of thick leaves and stem provide habitat for many local birds. 

Fruits and seeds: - Small white hard flowers are planted on the trap tree between February to March 15, which is called Meinjhar. This Meenjhar is changed from green to juicy from the end of March to the first week of April, filled with juicy water, the size of soybean. It starts to ripen from mid-April and becomes red yellow and purple in the shape of gram which is called yellow. These days, there is a spurt of peel in Marwar region to break these peelu. Women and children return from the rope and hang on the waist or neck and climb on the trap tree, the locals are knowledgeable in eating this peelu because unknown people make mistake in eating this fruit while eating this fruit in the middle. Spitting occurs because salinity breaks when the seed of the trap breaks in the mouth and another feature is that eating the fruit of this tree one by one peels the tongue and causes blisters in the mouth, so eat 8 to 10 grains at once. The fruit of Marwar's net is called native grapes, so the locals here eat with great fervor, the ripe fruit is lightly dried and eaten. Those are called kokad, the seeds are collected in kokkad, this kokad is eaten as native cultivar.

Fruits

Benefits of Jal tree: - The wood of jal  tree is used for making furniture and burning green branch of this tree is used as a toothbrush in rural areas. The leaves of this tree are used as fodder for cattle. Also, fruit of this tree is peelu, which contains vitamin C and carbohydrate, which helps to meet the lack of water in the body. Eating peelu does not cause sunstroke. From the trunk of this tree, the Kotar is the habitat of the local bird peacock, parrot, bird, wild cat, cuckoo etc. Apart from this the trap tree is used as a medicinal in many diseases.      

                                                                                                       Thank you......  

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मंगलवार, 5 जनवरी 2021

पीवणा (करैत) सांप तथा रेड सैंड बोआ के बारे में लोगों की गलतफहमियां [People's misconceptions about the Peevanna(Kareat) snake and red sand boa

        जैसा कि आपको सांपो के बारे में कुछ भ्रांतियों को मैंने आपको पिछले आर्टिकल में विस्तार से बताया था उसी कड़ी में दो अन्य प्रचलित भ्रांतियों से घिरे दो  सांपो के बारे में अंधविश्वास को इस आर्टिकल में बताऊंगा |


(1) पीवणा (करैत) सांप  :- जैसा कि नाम से ही पीवणा सांप है इसी शब्द को लोगों द्वारा हकीकत रूप दे दिया है यह भारत में पाए जाने वाले सबसे जहरीले सांपों में से एक हैं यह सांप औसतन 80 से 100 सेंटीमीटर लंबा होता है यह सांप मध्यरात्रि के बाद सक्रिय होता है इस सांप के बारे में लोगों की एक धारणा है कि यह मुंह में थूक के जाता है और मनुष्य की सांस को पी लेता है हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है बल्कि इस सांप को मनुष्य के शरीर की गंध अच्छी लगती है और यह रात को सोते मनुष्य के साथ आकर लेट जाता है लेकिन रात को सोते हुए मनुष्य के द्वारा अपने शरीर की करवट बदली जाती है तब यह सांप दबने से या अचानक शरीर की हलचल से डरकर काट लेता है और वहां से चला जाता है इस सांप के काटने का निशान इतना महीन होता है कि सूक्ष्म दर्शी से देखने पर ही देख पाते हैं काटने पर इसका असर सीधा गले पर पड़ता है जिससे गले में श्वसन नली के दोनों तरफ छाले हो जाते हैं और सुबह होते होते हैं यह जहर के छाले फूट जाते हैं और मनुष्य की मृत्यु हो जाती है इससे बचने का एक ही उपाय है कि रात को सोते समय खुशबूदार जैसे लहसून ,प्याज खा कर सो जाना चाहिए जिससे सांप को इसकी सुगंध आने से यह मनुष्य से दूर ही रहता है                                                                                                                                                              
                                                                  

                                                                      पीवणा (करैत) 

(2) रेड सैंड बोआ :-  इस सांप को दो मुहा कहा जाता है बस इसी नाम से लोगों ने इस सांप को दो मुंह वाला सांप बता दिया यह एक भ्रांति है जिसके बारे में आप को बताने से पहले इस सांप के बारे में जानकारी दे देता हूं यह सांप शरीर में काफी भारी होता है तथा चलने में बहुत ही धीमा चलता है यह सांप अक्सर रात को ही निकलता है यह सांप अपना आवास खुद नहीं बनाता है चूहों के बिल में घुस कर अपना आवास बना लेता है इस सांप का भोजन चूहे छोटे कीड़े मकोड़े आदि है यह सांप विषहीन होता है लेकिन इस सांप के शरीर की जकड़न बहुत खतरनाक होती है                                                                                                           

[रेड सैंड बोआ]
                                                                                                                                                                                                                                          
  :-दो मुहं वाला सांप - लोगों द्वारा इस सांप को दो मुंह वाला सांप कहा जाता है क्योंकि इसका सिर और पूँछ  वाला भाग दोनों समान होते हैं जिसको देखने पर ऐसा लगता है कि दोनों तरफ मुंह है इस सांप के बारे में एक अन्य भ्रांति है कि इस सांप को खाने पर शरीर में ताकत आती है इसी भ्रांति को लेकर लोगों द्वारा इस सांप को मारा जाता है या जिंदा पकड़ कर तस्करी की जाती है जो कि बिल्कुल गलत है इस सांप को मारने या नुकसान पहुंचाने पर वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में सजा का प्रावधान है | 

                                          => इसलिए दोस्तों इस पोस्ट को शेयर करें ताकि लोगों में फैली इन गलत भ्रांतियों को दूर किया जा सके और निर्दोष मारे जाने वाले जीवो की रक्षा की जाए.......                                                                                                                                                                        धन्यवाद 



English Translate :- 

                                 As I told you some misconceptions about snakes in the last article, I will tell you in this article the superstition about two snakes surrounded by two other popular misconceptions. 

(1) Peevana (Karait) Snake :- As the name itself is the Peevana snake, this word has been given a reality by the people. It is one of the most poisonous snakes found in India. This snake is on average 80 to 100 cm long. This snake is active after midnight. People have a belief about snake that it spits in the mouth and drinks human breath. In reality there is nothing like this but this snake likes the smell of human body and it sleeps at night He comes and lies down, but while sleeping at night, the body changes its body, then the snake bites from fear of pressing or sudden movement of the body and goes from there, the bite mark of this snake would be so fine It is said that when you are able to see through microscopic view, it affects the throat directly, due to which the blisters on both sides of the respiratory pipe in the throat and in the morning, poisonous blisters erupt and man dies. The only way to avoid this is that at night, one should sleep by eating fragrant like garlic, onion so that the snake gets its aroma. Lives far away from humans. 


(2) Red sand boa :- This snake is called two mouths, people by the same name have called this snake a two-faced snake. This is a misconception about which before giving you information about this snake, this snake is very heavy in the body. It happens and is very slow to walk. This snake often comes out at night. This snake does not make its own habitat, penetrates into the bill of mice and makes its habitat. The food of this snake is small insects, moth etc. This snake is poisonless. But the tightness of the body of this snake is very dangerous. Two-faced snake - This snake is called by people as a two-faced snake because both its head and the tail part are the same, which is seen on both sides. The mouth is another misconception about this snake, that eating this snake brings strength in the body, people are killed or caught alive and smuggled by this misconception It is absolutely wrong that the Wildlife Protection Act 1972 has a punishment for killing or harming this snake.

                                                      👉👉👉 So friends, share this post so that these misconceptions spread among the people can be removed and the lives of innocent people are protected .......

                                                                                                          Thank you


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